श्वसन तंत्र किसे कहते हैं (manushya ka swasan tantra)

इस आर्टिकल में जानेंगे कि श्वसन तंत्र किसे कहते हैं और manushya ka swasan tantra कितने भागों में बटा हुआ है और प्रत्येक भाग का क्या कार्य है तथा मनुष्य के श्वसन तंत्र क्रिया विधि क्या है और हम मनुष्य के श्वसन तंत्र से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे।

श्वसन तंत्र किसे कहते हैं (रेस्पिरेटरी सिस्टम इन हिंदी)

जब हमारे शरीर की कोशिकाओं को अपनी विभिन्न क्रियाओं को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है ऊर्जा प्राप्त करने के लिए कोशिकाएं पोषक तत्वों का O₂ द्वारा ऑक्सीकरण करती है। इस क्रिया के कारण ATP का निर्माण होता है और हानिकारक CO₂(कार्बन डाइऑक्साइड) गैस उत्पन्न होती है।

ऊर्जा प्राप्त करने के लिए वायुमंडल में उपस्थित O₂(ऑक्सीजन) का शरीर में प्रवेश करना जरूरी है तथा CO₂ का शरीर से बाहर निकलना आवश्यक है और गैसों का इस प्रकार का आदान-प्रदान रक्त (blood) के माध्यम से पूर्ण होता है। रक्त O₂ गैस को अपने अंदर घोलकर शरीर के विभिन्न अंगो व उतकों तक पहुंचाता है

 इनके द्वारा उत्पन्न CO₂ गैस को रक्त अपने अंदर समाहित करके श्वसन क्रिया के द्वारा CO₂ गैस को हमारे शरीर से बाहर निकालता है इस प्रकार ऑक्सीजन(O₂) और कार्बन डाइऑक्साइड(CO₂) के आदान प्रदान की क्रिया जो कि पर्यावरण, रक्त और कोशिकाओं के मध्य होती है इस श्वसन तंत्र( respiratory system) कहते हैं

श्वसन तंत्र किसे कहते हैं (manushya ka swasan tantra)

श्वसन प्रक्रिया के दौरान ऑक्सीजन युक्त शुद्ध वायु नाक, गले तथा श्वास नली के जरिए फेफड़ों में पाए जाने वाली वायु कोष्ठिका / कूपिका (Alveoil) में पहुंचाया जाता है इस कूपिका की झिल्ली अत्यंत महीन होती है जिसमें केशिका रुधिर वाहिकाओं का जाल होता है इन वाहिकाओं में मौजूद रक्त श्वास द्वारा लाई गई ऑक्सीजन को ग्रहण करता है और रक्त द्वारा लाई गई कार्बन डाइऑक्साइड को वायु कुपिका में छोड़ दी जाती है।

यह अशुद्ध वायु जो कि कार्बन डाइऑक्साइड है इसको फेफड़ों द्वारा सांस के जरिए बाहर छोड़ दिया जाता है तो आप जान गए होंगे कि श्वसन तंत्र किसे कहते हैं और यह किस प्रकार कार्य करता है तो अब हम मानव श्वसन तंत्र के कितने भाग होते हैं इसके बारे में जानते हैं।

मानव श्वसन तंत्र के कितने भाग होते हैं (parts of respiratory system)

मानव श्वसन तंत्र को मुख्य रूप से तीन भागों में विभाजित किया गया है जो कि निम्न है।

  1. ऊपरी श्वसन तंत्र (Upper respiratory system)
  2. निचला श्वसन तंत्र (Lower respiratory system)
  3. श्वसन मांसपेशियां ( respiration muscles )

ऊपरी श्वसन तंत्र (Upper respiratory system in Hindi)

मनुष्य के ऊपरी श्वसन तंत्र को मुख्य रूप से चार भागों में बांटा गया है और ज्यादातर यह भाग ऊपरी श्वसन तंत्र के लिए कार्य करते हैं

  • नासिका ( Nose )
  • मुख ( Mouth )
  • ग्रसनी (pharynx)
  • स्वर यंत्र (larynx)

नासिका ( Nose )

यह पहला शोषण अंग है जो बाहर दिखने वाले एक जोड़ी नासा द्वार से शुरू होता है यह एक बड़ी गुहा के रूप में होता है जोकि एक पतली सी हड्डी वह झिल्ली द्वारा दो भागों में विभाजित होता है और नासिका गुहा का पृष्ठ भाग नासाग्रसनी (Nasopharynx) में खुलता है नासिका गुहा में पाए जाने वाले छोटे-छोटे बाल श्वास लेते समय वायु में जो धूल के कण होते हैं उनको शरीर में जाने से रोकते है और वायु को शुद्ध होकर फिर फेफड़ों तक पहुंचती है।

मुख ( Mouth )

मुख श्वसन तंत्र में एक दितीय अंग के तौर पर कार्य करता है सांस लेने में मुख्य भूमिका नाक की ही होती है परंतु आवश्यकता होने पर मुख भी सांस लेने के काम आता है लेकिन मुख से ली गई श्वास नासिका द्वारा ली गई श्वास की तरह शुद्ध नहीं होती है।

ग्रसनी (pharynx kya hai in hindi)

यह मुंह और नासिका गुहा के पीछे का गले का भाग होता है जोकि  श्वास और आहार नली के ऊपर का भाग होता है ग्रसनी को तीन भागों में बांटा गया है जो कि निम्न है

  • मुख ग्रसनी(Nasopharynx)
  • नासा ग्रसनी(Oropharynx)
  • कंठ ग्रसनी (Laryngopharynx)

नासा ग्रसनी नासिका गुहा के पृष्ठ में पाए जाने वाला ग्रसनी पहला भाग है और हमारे द्वारा ली गई सांस नासिक गुहा से गुजरने के बाद नासाग्रसनी  से होती हुई मुख ग्रसनी में आती है और मुंह से ली गई सांस सीधे मुख ग्रसनी में जाती है और हमारे द्वारा अंदर खींची गई वायु कंठ ग्रसनी से होती हुई एपिग्लोटिस (गले का ढक्कन) की सहायता से स्वर यंत्र में पहुंचती है गले का ढक्कन एक पल्लेनुमा लोचदार उपास्थि संरचना का होता है

जोकि श्वास नली एवं आहार नली के बीच में एक स्विच का कार्य करता है क्योंकि ग्रसनी भोजन को निगलने में सहायता करती है ऐसी स्थिति में एपिग्लोटिस एक ढक्कन के तौर पर कार्य करता है जो की यह सुनिश्चित करता है कि भोजन को आहार नली में और वायु को श्वास नली में जाए।

स्वर यंत्र (larynx kya hai)

bronchi and bronchioles diagram

स्वर यंत्र कंठ ग्रसनी और श्वास नली को जोड़ने वाली एक छोटी सी संरचना है जिसे आप इस चित्र में देख सकते हैं जब हम भोजन को निकलते है तब एपिग्लोटिस स्वर यंत्र के आवरण की तरह कार्य करता है और भोजन को स्वर यंत्र में जाने से रोकता है हमारे स्वर यंत्र में स्वर रज्जू(vocal folds) संरचना पाई जाती है और यह स्वर रज्जू श्लेष्मा झिल्लीयां होती है जोकि हवा के करण कंपन पैदा करके अलग अलग तरह की ध्वनि उत्पन्न करती है

निचला श्वसन तंत्र (Lower Respiratory System in Hindi)

मनुष्य के निचले श्वसन तंत्र को मुख्य रूप से तीन भागों में बांटा गया है और ज्यादातर यही भाग कार्य करते हैं

  • श्वास नली (Trachea)
  • फेफड़े (Lungs)
  • श्वसनिका (Bronchi and Bronchiole)

श्वास नली (swas nali kise kahate hain)

यह नली लगभग 5 इंच लंबी होती है और यह कुटस्तरीय पक्ष्माभि स्तंभाकार उपकला द्वारा रेखित C आकार के उपास्थि छल्ले से बनी होती है इन छल्लो काम श्वास नली को आपस में चिपकने से रोकने का होता है और यह श्वास नली को खुला रखते हैं 

श्वास नली स्वर यंत्र को श्वसनिका से मिलाती है और यह सांस को वक्ष स्थल तक पहुंचाती है और श्वास नली वक्ष गुहा में जा कर दो भागों में विभाजित हो जाती है और दायीं तरफ वाली श्वास नली दायीं तरफ के फेफड़े से जुड़ी होती है और बायीं वाली तरफ वाली श्वास नली बायीं तरफ के फेफड़े से जुड़ी होती है इन शाखाओं को प्राथमिक श्वसनी कहते हैं और श्वास नली में उपस्थित उपकला(Epithelium) श्लेष्मा निर्माण होता है जोकि सांस के साथ आने वाली वायु में अशुद्धि को हटाकर शुद्ध करके फेफड़ों की और पहुंचाता है

श्वसनी और श्वसनिका (Bronchi and Bronchiole)

श्वास नली अंत में दायीं और बायीं और दो भागों में श्वसनी के रूप में विभाजित हो जाती है और यह प्राथमिक श्वसनी फेफड़ों में जाकर छोटी छोटी शाखाओं में विभाजित हो जाती है जिन्हें द्वितीयक श्वसनी कहते हैं और प्रत्येक दितीयक श्वसनी तृतीयक श्वसनीयों में विभाजित होती है

इसी प्रकार प्रत्येक तृतीयक श्वसनी छोटी-छोटी श्वसनिका में विभाजित हो जाती है यह श्वसनिका फेफड़ों में फैली हुई रहती है और सभी श्वसनिका आगे चलकर छोटी छोटी श्वसनिका मैं विभाजित होती है इसी प्रकार श्वसनी और श्वसनिका मिलकर एक वृक्ष नुमा संरचना बनाते हैं जोकि अनेक शाखाओं में विभाजित होती है इन शाखाओं के अंतिम छोर पर कूपिकाएं(Alveoil) पाई जाती है और हमारे शरीर में गैसों के विनिमय में इन कूपिकाओ के माध्यम से होता है

फेफड़े (lungs kise kahate hain)

मनुष्य के फेफड़े लचीले कोमल और हल्के गुलाबी रंग के होते हैं और इन फेफड़ों की संख्या 2 होती है जिसमें से एक दाई तरफ होता है और दूसरा बाई तरफ होता है मनुष्य का फेफड़े बहुत सारी श्वास नलियों, कूपिकाओ,रक्त वाहिनियों, लचीले तंतुओं ,झिल्लीयों और कोशिकाओं से मिलकर बना होता है

मनुष्य के फेफड़े का चित्र (manushya ke lungs)

मनुष्य का दाहिना फेफड़ा बाय फेफड़े से लंबाई में थोड़ा छोटा और चौड़ाई में थोड़ा सा ज्यादा होता है और पुरुषों की तुलना में स्त्रियों के फेफड़े थोड़े हल्के होते हैं और बाया फेफड़ा दो खंडों में विभाजित रहता है और दाहिना फेफड़ा तीन खंडों में विभाजित रहता है और प्रत्येक खंड में कुछ उपखंड होते हैं इसी प्रकार प्रत्येक उपखंड अनेकों छोटे-छोटे खंडों में विभाजित होता है

मनुष्य के फेफड़े स्पंजी उतकों से बने होते हैं इसके अंदर बहुत सारी केशिकाएं(Capillaries) और लगभग 30 मिलीयन कूपिकाएं पाई जाती है इन कूपिकाओं की संरचना कपड़ों में होती है और यह श्वसनिका के आखिरी सिरे पर पाई जाती हैं और यह बहुत सारी केशिकाओ से घिरा रहता है कुपिका में सेल की उपकला की पंक्तियां पाई जाती है जोकि केशिका में प्रवाहित रुधिर से गैसों के विनिमय में मदद करती है

श्श्वसन मांसपेशियां (respiration muscles)

फेफड़ों में गैस के विनिमय के लिए मांसपेशियों की आवश्यकता होती है यह मांसपेशियां सांस लेने और छोड़ने में सहायता करती है हमारे शरीर में मुख्य रूप से श्वसन के लिए मध्यपट / डायफाम उत्तरदाई होता है और यह मध्य पट कंकाल पेशी से बनी हुई एक पतली चादर नुम  संरचना है 

वृक्ष स्थल किससे पर पाई जाती है और मध्यपट के संकुचन से वायु नाक से होती हुई फेफड़ों के अंदर प्रवेश करती है तथा शिथिलन से वायु फेफड़ों से बाहर निकलती है इसके अतिरिक्त हमारी पसलियों में विशेष प्रकार की मांसपेशियां होती है जो कि मध्यपट के संकुचन व शिथिलन में सहायता करती है

श्वसन की प्रक्रिया

श्वसन की प्रक्रिया को दो भागों में बाटा  गया है

बाह्य श्वसन (external respiration)

इसमें गैसों का विनिमय वायु से भरी कुपिकाओं तथा केशिकाओं में प्रवाहित होने वाले रक्त के मध्य गैसों के आंशिक दबाव के अंतर के कारण होता है

अंतरिक श्वसन (internal respiration)

आंतरिक श्वसन में गैसों का विनिमय केशिकाओं में प्रवाहित होने वाला रक्त तथा उतकों के मध्य विसरण के माध्यम से होता है

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