विद्युत जनित्र का मूल सिद्धांत बनावट तथा कार्य विधि का सचित्र वर्णन करें ?

आप सभी का Gadri Academy में स्वागत है आज इस ब्लॉक पोस्ट में हम यह जानेंगे कि vidyut janitra ka siddhant kya hai और जनरेटर कितने प्रकार के होते हैं तथा उसी के साथ प्रत्यावर्ती धारा जनित्र(A.C. Generator) और दिष्ट धारा जनित्र(D.C. Generator) की बनावट और कार्य विधि को भी जानेंगे।

विद्युत जनित्र का सिद्धांत लिखिए

विद्युत धारा जनित्र एक ऐसी युक्ति है जिसमें चुंबकीय क्षेत्र में रखी कुंडली को यांत्रिक ऊर्जा देकर घूर्णन कराकर विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जाती है और यह युक्ति विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करती है

विद्युत धारा जनित्र दो प्रकार के होते हैं

  1. प्रत्यावर्ती धारा जनित्र (A.C. Generator)
  2. दिष्ट धारा जनित्र (D.C. Generator)

प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का सचित्र वर्णन

जैसा कि हम सभी जानते हैं हमारे घरों में जो विद्युत उपकरण होते हैं जैसे कि बल्ब ,पंखा ,टोस्टर ,फ्रिज आदि प्रत्यावर्ती धारा के स्रोत हैं और यह सभी विद्युत उपकरण प्रत्यावर्ती धारा से चलते हैं लेकिन जब भी हमारे घर में, शादी में , मैरिज हॉल में या फिर गार्डन में जब बिजली बंद हो जाती है तो डीजल से चलने वाली एक युक्ति द्वारा बिजली का उत्पादन किया जाता है इस युक्ति को प्रत्यावर्ती धारा जनित्र (A.C. generator) कहते हैं

यह प्रत्यावर्ती धारा जनित्र यांत्रिक ऊर्जा को प्रत्यावर्ती विद्युत ऊर्जा में बदलने का काम करता है

प्रत्यावर्ती धारा जनित्र के मुख्य भागों के नाम

प्रत्यावर्ती धारा जनित्र को मुख्य रूप से चार भागों में बांटा गया है जो कि निम्न है

  • क्षेत्र चुंबक (Field magnet)
  • आर्मेचर या कुंडली (Armature or Coil)
  • सर्पिवलय (Slip Ring)
  • ब्रूश (Brushes)

जनित्र क्षेत्र चुंबक किसे कहते हैं

यह एक बहुत ही शक्तिशाली नाल के आकार की चुंबक (N-S) होती है और इस चुंबक के बीच में एक कुंडली होती है जिसके चारों तरफ चुंबकन क्षेत्र उत्पन्न होता है।

आर्मेचर किसे कहते हैं

यह कच्चे लोहे के ढांचे पर लिपटी हुई विद्युत रोधी तांबे की कुंडली होती है जोकि यांत्रिक ऊर्जा उत्पन्न करती है और इसका उपयोग जेनरेट और विद्युत मोटरों में किया जाता है।

सर्पिवलय किसे कहते हैं

यह कुंडली के सिरे A और D जो तांबे के तार होते हैं जो की अलग-अलग धात्विक वलयों जैसे कि S₁ और S₂ से जोड़ दिया जाता है और यह वलय कुंडली के घूमने पर उसके साथ-साथ घूमते हैं।

जनित्र ब्रूश किसे कहते हैं

यह कार्बन से या फिर किसी अन्य धातु से बने दो ब्रुश होते हैं और कार्बन से बने इन दोनों ब्रुशों का एक सिर वलय (Slip Ring) को स्पर्श करता है और दूसरा सिरा बाहर की ओर परिपथ से संयोजित कर दिया जाता है

प्रत्यावर्ती धारा जनित्र की कार्यविधि समझाइए

जब भी आर्मेचर यानी कुंडली को यांत्रिक ऊर्जा देखकर घुमाया जाता है जिससे कुंडली abcd में परित चुम्बकीय फ्लेक्स में लगातार परिवर्तन होता रहता है जिसके कारण कुंडली के सिरो के बीच प्रेरित धारा उत्पन्न होकर बहने लगती है

प्रत्यावर्ती धारा जनित्र का चित्र ( pratyavarti dhara janitra ka chitra)

जब भी कुंडली को दक्षिणावर्त घुमाया जाता है तब कुंडली का तल बार-बार चुम्बकीय क्षेत्र के समांतर और लंबवत होता रहता है जिसमें प्रथम आधे चक्र में फ्लेक्स की मात्रा घटती है जिसके कारण प्रथम आधे घुणन में धारा की दिशा बाह्य परिपथ में दक्षिणावर्त होती है और अगले आधे चक्कर में धारा की दिशा बाह्य परिपथ में वामावर्त होती है अर्थात हम इसे इस प्रकार समझ सकते हैं कि प्रथम आधे चक्र में बाह्य परिपथ में धारा B₁ से B₂ की ओर बहती है और बाकी आधे चक्र में बाह्य परिपथ में धारा B₂ से B₁ की और बहती है।

इस प्रकार कुंडली के पूर्ण  घुर्णन में निश्चित कालांतर के बाद धारा की दिशा बदलती है तथा इसी के साथ धारा का मान भी नियमित रूप से बदलता है इस प्रकार की धारा को प्रत्यावर्ती धारा कहते हैं।

भारत में ज्यादातर प्रत्यावर्ती धारा(AC Current) की आवर्ती 50hz हटर्ज होती है और किसी प्रत्यावर्ती धारा जनित्र से 50hz हटर्ज आवर्ती वाली धारा उत्पन्न करने के लिए जेनरेट में लगी कुंडली को एक सेकंड में 50 बार घुमाया जाता है तब वह जेनरेट  50hz हटर्ज आवर्ती वाली प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न करता है

प्रत्यावर्ती धारा जनित्र से उत्पन्न धारा का मान किस पर निर्भर करता है

प्रत्यावर्ती धारा जन्नत से उत्पन्न धारा का मान कुंडली में फेरों की संख्या और कुंडली के क्षेत्रफल तथा इसी के साथ घुर्णन वेग व चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता पर निर्भर करता है

तो आप समझ गए होंगे कि pratyavarti dhara janitra किसे कहते हैं और यह किस प्रकार कार्य करता है अब हम इसी प्रकार के दूसरे जनित्र के बारे में जानेंगे जो की दिष्ट धारा जनित्र है।

दिष्ट धारा जनित्र का सिद्धांत संरचना तथा कार्यविधि का सचित्र वर्णन कीजिए

दिष्ट धारा जनित्र एक ऐसी युक्ति है जो की यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में बदलने का काम करती है लेकिन यह प्रत्यावर्ती धारा जनित्र से बिल्कुल अलग है क्योंकि इस जनित्र से उत्पन्न विद्युत ऊर्जा से प्राप्त विद्युत धारा की दिशा समय के साथ नियत रहती है और इस प्रकार के जनित्र को दिष्ट धारा जनित्र कहते हैं

दिष्ट धारा जनित्र की बनावट (dc generator construction)

दिष्ट धारा जनित्र का चित्र (dc generator diagram)

दिष्ट धारा जनित्र की बनावट भी प्रत्यावर्ती धारा जनित्र जैसी होती है लेकिन इसमें अंतर सिर्फ इतना सा है कि इसमें दो सर्पिवलय की जगह विभक्त वलय दिक परिवर्तक का उपयोग किया जाता है

इसमें हम धातु की एक वलय का उपयोग करते हैं जिसके दो बराबर भाग C₁ और C₂ करते हैं जिनको  कम्यूटेटर कहते हैं और इसी के साथ आर्मेचर का एक सिरा कम्यूटेटर C₁ के एक भाग के साथ जुड़ा होता है और आर्मेचर का दूसरा सिरा कम्यूटेटर C₂ के साथ जुड़ा होता है तथा इसी के साथ C₁ और C₂ कम्यूटेटर दो कार्बन ब्रूशों B₁और B₂ को स्पर्श करते हैं।

दिष्ट धारा जनित्र की कार्यविधि (working of dc generator)

दिष्ट धारा जनित्र में लगे आर्मेचर को चुम्बकीय क्षेत्र में घुमाया जाता है तो कुंडली से पारित चुंबकीय फ्लेक्स में लगातार परिवर्तन होने के कारण उसमें प्रेरित धारा बहने लगती है और उसमें लगे ब्रूश B₁ और B₂ की स्थिति इस प्रकार संयोजित की जाती है कि वह कुंडली में धारा की दिशा में परिवर्तित होने पर ठीक उसी समय इन ब्रूशों का संबंध कम्यूटेटर के एक भाग से हटकर दूसरे भाग से हो जाता है और बाह्य परिपथ में धारा की दिशा समय के साथ नियत रहती है और यह धारा दिष्ट धारा होती है।

कुंडली के प्रथम आधे चक्र में प्रेरित द्वारा की दिशा इस प्रकार होती है की कुंडली C₁से जुड़ा सिरा धनात्मक होता है और कुंडली C₂ से जुड़ा सिरा ऋणात्मक होता है इस स्थिति में ब्रूश B₁ धनात्मक होता है और दूसरा ब्रूश B₂ ऋणात्मक होता है फिर अगले आधे चक्र में कुंडली में धारा की दिशा जैसे ही बदलता है उसी के साथ कुंडली C₁ से जुड़ा सिरा ऋणात्मक हो जाता है और कुंडली C₂ से जुड़ा सिरा धनात्मक होता है

दिष्ट धारा जनित्र की कार्यविधि (working of dc motor diagram)
कम्यूटेटर की स्थिति आधे घूर्णन के बाद

लेकिन कुंडली के घूमने के कारण C₁ घूमकर C₂ के स्थान पर B₂ ब्रूश के संपर्क में आ जाता हैं इस प्रकार C₂ घूमकर C₁ के स्थान पर B₁ ब्रूश के संपर्क में आ जाता है अतः B₁ ब्रूश सदैव धनात्मक रहता है और B₂ ब्रूश सदैव ऋणात्मक रहता है इससे यह पता चलता है कि एक पूर्ण चक्र में बाह्य परिपथ में धारा की दिशा B₁ ब्रूश से B₂ ब्रूश की और बहती है। अर्थात हम यह कह सकते हैं कि बाह्य परिपथ में धारा की दिशा समय के साथ नियत रहती है।

तो दोस्तों मुझे आशा है आप समझ गए होंगे vidyut janitra ka siddhant kya hai और प्रत्यावर्ती धारा जनित्र(AC Generator) तथा दिष्ट धारा जनित्र (DC Generator) में अंतर क्या है और यदि विद्युत धारा जनरेटर से संबंधित आपका कोई प्रश्न है तो आप मुझे कमेंट में पूछ सकते हैं।

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